इतिहास रचने से एक कदम दूर प्रगनानंदा, पढ़िए सक्सेस स्टोरी:प्रेशर कुकर लेकर चलती हैं मां, ताकि बेटे को विदेश में भी मनपसंद खाना मिले

प्रगनानंदा

चंद्रयान-3 की सफलता के बाद आज भारत की नजरें युवा चेस प्लेयर प्रगनानंदा पर टिकी रहेंगी। वे इस समय मौजूदा वर्ल्ड चैंपियन नॉर्वे के मैग्नस कार्लसन के खिलाफ अजरबैजान के बाकू शहर में FIDE चेस वर्ल्ड कप का फाइनल मुकाबला खेल रहे हैं। दो क्लासिकल गेम के बाद दोनों खिलाड़ी बराबरी पर चल रहे हैं। अब चैंपियन का फैसला आज रैपिड चेस के जरिए टाईब्रेकर से होगा।

अगर वे कार्लसन को मात देने में कामयाब हो जाते हैं, तो 21 साल बाद कोई भारतीय यह टाइटल जीतेगा। इससे पहले विश्वनाथन आनंद ने 2002 में इस चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी। तब प्रगनानंदा पैदा भी नहीं हुए थे। इस स्टोरी में पढ़िए कौन है यह युवा चेस प्लेयर, खेल में इनका अब तब तक का सफर कैसा रहा है…

शुरुआत प्रगनानंदा और कार्लसन के करियर रिकॉर्ड से…

पिता बैंक में काम करते हैं, मां हाउस वाइफ
प्रगनानंदा का जन्म 10 अगस्त, 2005 को चेन्नई में हुआ। उनके पिता स्टेट कॉर्पोरेशन बैंक में काम करते हैं, जबकि मां नागलक्ष्मी एक हाउस वाइफ हैं। उनकी एक बड़ी बहन वैशाली आर हैं। वैशाली भी शतरंज खेलती हैं।

प्रगनानंदा का नाम पहली बार चर्चा में तब आया, जब उन्होंने 7 साल की उम्र में वर्ल्ड यूथ चेस चैंपियनशिप जीत ली। तब उन्हें फेडरेशन इंटरनेशनेल डेस एचेक्स (FIDE) मास्टर की उपाधि मिली।

वे 12 साल की उम्र में ग्रैंडमास्टर बन गए और सबसे कम उम्र में यह उपाधि हासिल करने वाले भारतीय बने। इस मामले में प्रगनानंदा ने भारत के दिग्गज शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद का रिकॉर्ड तोड़ा। इससे पहले, वे 2016 में यंगेस्ट इंटरनेशनल मास्टर बनने का खिताब भी अपने नाम कर चुके हैं। तब वे 10 साल के ही थे। चेस में ग्रैंडमास्टर सबसे ऊंची कैटेगरी वाले खिलाड़ियों को कहा जाता है। इससे नीचे की कैटेगरी इंटरनेशनल मास्टर की होती है।

सेमीफाइनल जीतने के बाद मां नागलक्ष्मी के साथ प्रगनानंदा।

सेमीफाइनल जीतने के बाद मां नागलक्ष्मी के साथ प्रगनानंदा।

‘प्रगनानंदा की सफलता के पीछे मां का बड़ा हाथ’
प्रगनानंदा की सफलता के पीछे मां का बड़ा हाथ है। उनकी हर जरूरत का ध्यान मां खुद रखती है। बात चाहे खान-पान की हो या फिर ट्रेनिंग की। प्रगनानंद की मां हमेशा उनके साथ रहती हैं। वे जहां भी खेलने जाते हैं, मां उनके साथ जाती हैं। वे जहां भी जाती हैं प्रेशर कुकर साथ लेकर जाती हैं, ताकि बेटे को विदेश में भी घर का खाना खिला सकें।

जब तक प्रगनानंदा मैच खेलते हैं वे हाल के एक कोच में चुपचाप बैठी रहती हैं। फाइनल के सेकेंड क्लासिकल गेम में कार्लसन को ड्रॉ पर रोकने के बाद प्रगनानंदा ने अपनी मां को लेकर कहा- ‘मेरी मां मेरे साथ-साथ मेरी बहन के लिए भी बहुत बहुत बड़ा सहारा रही हैं।’

बहन को देखकर चेस खेलना शुरू किया
इस युवा चेस प्लेयर ने करियर की शुरुआत अपनी बड़ी बहन वैशाली आर को देखकर की। वैशाली भी शतरंज खेलती हैं। वे 5 साल की उम्र से शतरंज खेल रही है। वैशाली भी महिला ग्रैंडमास्टर हैं।

वे एक इंटरव्यू में बताती हैं- ‘जब मैं करीब 6 साल की थी, तो बहुत कार्टून देखती थी। मुझे TV से दूर करने के लिए पैरेंट्स ने मेरा नाम शतरंज और ड्राइंग की क्लास में लिखा दिया।’

बहन को चेस खेलता देख प्रगनानंदा भी उससे प्रेरित हुए और महज 3 साल की उम्र में शतरंज सीखने लगे। उन्होंने चेस की कोई क्लास नहीं ली और अपनी बड़ी बहन से खेलना सीखा।

Source: ln.run/G6DRl

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