दिल्ली से जयपुर के बीच 225 किमी के रूट पर अगले छह साल में बिजली से चलने वाली बसें दौड़ने लगेंगी। केंद्रीय राष्ट्रीय राजमार्ग मंत्रालय देश का पहला इलेक्ट्रिसिटी इनेबल्ड हाईवे (विद्युत चालित हाईवे) बनाने की दिशा में काम कर रहा है। इसके लिए मौजूदा सड़क पर ही आने-जाने वाले रास्तों पर एक डेडिकेटेड लेन बिजली से चलने वाली बसों के लिए तय हो जाएगी। इन बसों की रफ्तार 100 किमी तक होगी। ऐसी 55 सीटर बस का प्रोटोटाइप भी तैयार हो रहा है। दो बसें जोड़कर 95 सीटर पर भी काम चल रहा है।
कैसे होगा… डिवाइडर पर बिजली के पोल लगेंगे, तारों से विद्युत आपूर्ति
अफसरों का कहना है, इलेक्ट्रिक हाईवे के लिए अलग सड़क की जरूरत नहीं है, एक डेडिकेटेड लेन होगी। इन बसों में तारों से बिजली आपूर्ति होगी। इसके लिए डिवाइडर पर बिजली के पोल लगाए जा सकते हैं। इस प्रोजेक्ट को बीओटी (बिल्ट,ऑपरेट एंड ट्रांसफर) के तहत बनाने की योजना है। सूत्रों के अनुसार प्रोजेक्ट में टाटा और सिमन्स जैसी कंपनियों को शामिल किया जाएगा।
अलग कैसे… न बैटरी, न चार्जिंग की जरूरत, ट्रेन-मेट्रो की तर्ज पर चलेंगी
ये इलेक्ट्रिक बसें अलग होती हैं। अन्य इलेक्ट्रिक बस बैटरी से चलती हैं और चार्ज करने की जरूरत पड़ती है, जबकि विद्युत ऊर्जा से चलने वाली बसों में लगातार बिजली की आपूर्ति होती रहती है, इसलिए इन्हें चार्जिंग की जरूरत ही नहीं है। जिस तरह अभी ट्रेन या मेट्रो में विद्युत आपूर्ति की जाती है, उसी तर्ज पर ये बसें भी चलेंगी। इसका मकसद ग्रीन ऊर्जा को बढ़ावा देना है।
दुनिया; जर्मनी-स्वीडन जैसे कई यूरोपीय देशों में ऐसी बसें चल रहीं…
जर्मनी में प्रति किमी 22 करोड़ रु. के खर्च से इलेक्ट्रिसिटी हाईवे बन चुका है। इससे वहां ट्रकों का करीब 60% ट्रैफिक घटा है। स्वीडन भी इसका इस्तेमाल कर चुका है। मौजूदा समय में कई अन्य यूरोपीय देशों में इस तरह की बसें चलाई जाती हैं।
इलेक्ट्रिक हाईवे होता क्या है?
आसान भाषा में समझें तो ऐसा हाईवे जिस पर इलेक्ट्रिक वाहन चलते हों। आपने ट्रेन के ऊपर एक इलेक्ट्रिक वायर देखा होगा। ट्रेन के इंजन से ये वायर एक आर्म के जरिए कनेक्ट होता है, जिससे पूरी ट्रेन को इलेक्ट्रिसिटी मिलती है। इसी तरह हाइवे पर भी इलेक्ट्रिक वायर लगाए जाएंगे। हाइवे पर चलने वाले वाहनों को इन वायर्स से इलेक्ट्रिसिटी मिलेगी। इसे ही ई-हाइवे, यानी इलेक्ट्रिक हाइवे कहा जाता है। इस हाईवे पर इलेक्ट्रिक वाहनों को चार्ज करने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूरी पर चार्जिंग पॉइंट भी होंगे।
किस तरह काम करते हैं इलेक्ट्रिक हाईवे?
दुनियाभर में तीन अलग-अलग तरह की टेक्नोलॉजी ई-हाईवे के लिए इस्तेमाल की जाती हैं। भारत सरकार स्वीडन की कंपनियों से बात कर रही है, इसलिए माना जा रहा है कि स्वीडन में जो टेक्नोलॉजी इस्तेमाल की जा रही है, वही भारत में भी होगी।
स्वीडन में पेंटोग्राफ मॉडल इस्तेमाल किया जाता है, जो भारत में ट्रेनों में भी इस्तेमाल किया जाता है। इसमें सड़क के ऊपर एक वायर लगाया जाता है, जिसमें इलेक्ट्रिसिटी फ्लो होती है। एक पेंटोग्राफ के जरिए इस इलेक्ट्रिसिटी को वाहन में सप्लाई किया जाता है। ये इलेक्ट्रिसिटी डायरेक्ट इंजन को पॉवर देती है या वाहन में लगी बैटरी को चार्ज करती है। इसके अलावा कंडक्शन और इंडक्शन मॉडल का भी इस्तेमाल किया जाता है। कंडक्शन मॉडल में सड़क के भीतर ही वायर लगा होता है, जिसपर पेंटोग्राफ टकराता हुआ चलता है।
Source: ln.run/H8CrZ