कश्मीर में कम बारिश से 40% झेलम सूखी:हाउसबोट्स ने किराया आधा किया, फिर भी टूरिस्ट नहीं मिले; मालिक मजदूरी करने पर मजबूर

झेलम

अगस्त में कश्मीर में सबसे कम बारिश होने से झेलम सूखने की कगार पर है। झेलम 40% सूखकर छोटी बरसाती नदी जैसी रह गई है। इससे यहां का हाउसबोट उद्योग संकट में आ गया। आमतौर पर यहां एक रात का किराया दो हजार रुपए था। पर्यटक आने कम हुए तो तो हाउसबोट मालिकों ने किराया घटाकर एक हजार रुपए कर दिया। इसके बावजूद टूरिस्ट नहीं मिल रहे।

रिवर झेलम हाउसबोट एसोसिएशन के प्रवक्ता गुलाम कादिर गस्सी कहते हैं कि हालात ऐसे बन गए हैं कि कई हाउसबोट मालिक मजदूरी करने को मजबूर हैं। कुछ तो गाइड बन गए हैं। कुछ हाउसबोट और प्लॉट सरकार को लौटा रहे हैं ताकि उनका पुनर्वास हो सके।

डल झील में वॉटर लेवल मेंटेंन रखता है प्रशासन
​​​​​​​कादिर गस्सी कहते हैं, ‘कश्मीर में डल झील और झेलम, दो जगह हाउसबोट हैं। हम पानी से लबालब झेलम के विज्ञापन दिखाकर सैलानियों को यहां आने के लिए कहते हैं। पर अब वो झेलम दिखती ही नहीं। पानी नहीं आया तो सर्दियों में मुश्किल बढ़ेगी। कादिर ने बताया, डल के हाउसबोट सुधरवाने में प्रशासन मदद देता है। पर हमारे साथ ऐसा नहीं है।

हैरानी की बात यह है कि एक किमी से भी कम दूरी पर स्थित डल झील पर्यटकों से लबालब है। क्योंकि राज्य सरकार ने वहां वॉटर गेट की मदद से जलस्तर मेंटेंन रखा है।

झेलम

झेलम में कभी 800 हाउसबोट हुआ करती थीं, जो अब घटकर 76 रह गई हैं।

एक हाउसबोट की मरम्मत में लग जाते हैं 5 लाख रुपए
बरसों से यहां हाउसबोट चला रहे अली मोहम्मद बताते हैं, ‘40 साल बाद झेलम में पानी इतना नीचे उतरा है। हाउसबोट वीरान पड़े हैं। देवदार की लकड़ियां गर्मी नहीं सह पाती हैं, इसीलिए टूटने लगी हैं। मरम्मत भी आसान नहीं, क्योंकि लकड़ी के दाम 7 हजार रुपए घन फीट हैं। लकड़ी व मजदूरी जोड़ लें तो एक हाउसबोट की मरम्मत में 5 लाख रुपए तक खर्च आता है।

अब हाउसबोट ठीक कराएं या पेट पालें। ऐसा ही रहा तो झेलम में हाउसबोट बचेगी ही नहीं।’ यह दर्द सिर्फ अली का नहीं, बल्कि उन 76 हाउसबोट मालिकों का है, जो संकट में हैं। यहां कभी 800 हाउसबोट हुआ करती थीं।

झेलम की कई बोट 100 साल से ज्यादा पुरानी हैं। इन फ्लोटिंग होटलों को पेपर, चांदी, तांबा, कांच और हस्तशिल्प से सजाते हैं ताकि पर्यटक आकर्षित हो सकें। पर आज हाउसबोट पर्यटकों के लिए तरस रही हैं।

जहां से झेलम निकलती है, वो ग्लेशियर भी 23% तक सिकुड़ा
झेलम में पानी कम होने की एक बड़ी वजह कोलाहोई ग्लेशियर का सिकुड़ना है। झेलम इसी से निकलती है। यह ग्लेशियर 23% तक सिकुड़ चुका है। तापमान बढ़ने से हर साल करीब एक मीटर सिकुड़ रहा है। एक्सपर्ट कहते हैं यह रफ्तार हिमालय के बाकी ग्लेशियर्स से बहुत ज्यादा है। बीती सर्दियों में सामान्य से कम बर्फबारी और ऊंचे तापमान ने भी ग्लेशियर के पिघलने की रफ्तार बढ़ा दी है।

इसके अलावा रेत माफिया भी झेलम के दुश्मन बने हुए हैं। वे चाहते हैं कि नदी में पानी कम रहे, ताकि रेत खनन आसानी से हो सके।

Source: ln.run/xHV6_

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