भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 14 सितंबर को साल 2023-24 के लिए नॉन बैंकिंग फाइनेंस कंपनी यानी NBFCs की लिस्ट का ऐलान किया है। RBI ने स्केल बेस्ड रेगुलेशन के तहत इस अपर लेयर NBFCs की लिस्ट में 15 कंपनियों को शामिल किया है। इस लिस्ट में LIC हाउसिंग फाइनेंस टॉप पर है। वहीं बजाज फाइनेंस दूसरे, श्रीराम फाइनेंस तीसरे और टाटा संस प्राइवेट लिमिटेड चौथे नंबर पर शामिल है।
NBFCs सेक्टर के बढ़ते साइज और उससे जुड़े रिस्क के दूसरे सेक्टर पर बढ़ते असर को देखते हुए रिजर्व बैंक ने NBFC के लिए अक्टूबर 2022 से नए नियमों को जारी किया था। इसमें साइज और कारोबार के हिसाब से NBFC की 4 कैटेगरी बनाई गई हैं।
कैटेगरी का उद्देश्य कंपनी के विस्तार के साथ उसके लिए आवश्यक नियमों को बढ़ाना है। आसान भाषा में कहें तो इनमें से NBFCs-अपर लेयर के नियम करीब-करीब वैसे हैं, जैसे बैकों के लिए दिए हैं। नियमों के मुताबिक, देश की टॉप-10 NBFCs इस लिस्ट में बनी रहती हैं और इनके अलावा रिजर्व बैंक और किसी कंपनी को चाहे तो इसमें शामिल कर सकता है।
क्या है स्केल बेस्ड रेगुलेशन
NBFC का महत्व इस लिए है कि उन्होंने उस जगह तक लोगों की आर्थिक जरूरतों को पूरा किया, जहां बैंक नहीं पहुंच सकते थे। एनबीएफसी के द्वारा दूर दराज तक वित्तीय सेवाओं को पहुंचाने की खासियत की वजह से इन्हें बढ़ावा दिया गया और इसके लिए नियम उतने सख्त नहीं रखे गए जितने बैंकों के लिए होते हैं।
हालांकि, समय के साथ कई एनबीएफसी का साइज बढ़ा और इसी के साथ ही उनके साथ उनसे जुड़े जोखिमों का आकार भी बढ़ा और वो ऐसी जगह पर पहुंच गए, जहां उनसे जुड़े जोखिमों का दूसरे सेक्टर पर असर देखने को मिल सकता था।
कोविड ने इस कमजोरी को सामने रखा। इसे देखते हुए अक्टूबर 2021 में रिजर्व बैंक ने एक प्रस्ताव रखा, जिसमें स्केल पर आधारित नियमों की बात कही गई। यानि आकार में जितनी बड़ी कंपनी उसके लिए उसी के अनुसार रेगुलेशन रखे गए। एक साल बाद रिजर्व बैंक ने ऐसी 4 कैटेगरी से जुड़े नियमों को जारी कर दिया।
NBFC की कितनी है कैटेगरी
रिजर्व बैंक ने स्केल बेस्ड रेगुलेशन में 4 कैटगरी रखी हैं। जिसमें से 3 कैटेगरी में कंपनियों को रखा गया है। सबसे नीचे बेस लेयर ( NBFC –BL) आती है, जिसमें 1000 करोड़ रुपए से कम के एसेट साइज की कंपनियां शामिल की जाती हैं। मोटे तौर पर इसमें वो कंपनियां आती हैं, जिनका कारोबार सीमित हो यानि वो स्पेस्फिक (P2P, अकाउंट एग्रीगेटर, नॉन-ऑपरेटिव होल्डिंग कंपनी) हों या फिर जिनका कस्टमर इंटरफेस न हो।
इससे ऊपर मिडिल लेयर ( NBFC –ML) आती है। इसमें सभी डिपॉजिट स्वीकार करने वाली कंपनियां शामिल की जाती हैं। भले ही इनका एसेट साइज कितना हो, वहीं डिपॉजिट न स्वीकार करने वाली कंपनियां जिनका एसेट साइज 1000 करोड़ रुपए से ज्यादा हो। इंफ्रा डेट फंड- एनबीएफसी, हाउसिंग फाइनेंस कंपनियां, इंफ्रा फाइनेंस कंपनी –एनबीएफसी में शामिल की जाती हैं। यहां बेस लेयर से ज्यादा रेगुलेशन होते हैं।
फिर इसके ऊपर अपर लेयर ( NBFC-UL) कंपनियां आती हैं। जिनका साइज काफी बड़ा होता है और इनके लिए नियम करीब-करीब वैसे ही होते हैं, जैसे बैंकों के लिए होते हैं। एसेट साइज के आधार पर टॉप-10 एनबीएफसी अपर लेयर में बनी रहती हैं। वहीं कई अन्य पैरामीटर होते हैं, जिनके आधार पर रिजर्व बैंक कुछ अन्य कंपनियों को इसमें शामिल कर सकता है। सरकारी स्वामित्व वाली एनबीएफसी को फिलहाल अपर लेवल में शामिल नहीं किया जाएगा, वो या तो बेस लेवल में या फिर मिडिल लेवल में रहेंगी।
वहीं सबसे ऊपर टॉप लेयर ( NBFC-TL) कंपनियां आती हैं। सैद्धांतिक रूप से ये लेवल खाली रखा गया है। हालांकि, अगर रिजर्व बैंक को लगता है कि अपर लेवल में शामिल कोई एनबीएफसी ऐसी जगह पहुंच गई है कि उसके साथ सिस्टमैटिक रिस्क भी बढ़ गई है तो ऐसी कंपनियों को बैंक टॉप लेयर में भेज दिया जाएगा।
Source: ln.run/61Px2