महिला-आरक्षण बिल आज नए संसद भवन में पेश हो सकता है:सोनिया ने कहा- ये बिल कांग्रेस का है; लोकसभा में 180 सीटें बढ़ाने की चर्चा

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आज गणेश चतुर्थी के दिन नए संसद भवन में कामकाज शुरू होगा। पुरानी संसद में सोमवार 18 सितंबर को कार्यवाही का अंतिम दिन था। स्पेशल सेशन के बाद कल शाम 6:30 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट मीटिंग हुई।

सूत्रों के हवाले से बताया कि महिला आरक्षण बिल को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद पटेल ने भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करके बिल को मंजूरी मिलने की बात कही। हालांकि, कुछ देर बाद उन्होंने ट्वीट डिलीट कर दिया।

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, चर्चा इस बात की भी है कि केंद्र सरकार लोकसभा में 180 सीटें बढ़ा सकती है। फिलहाल लोकसभा में 543 सीटें हैं। अगर सरकार सीटें बढ़ाने का फैसला लेती है तो यह आंकड़ा बढ़कर 743 हो जाएगा।

इधर, महिला आरक्षण बिल पर अब पार्टियों के बीच क्रेडिट लेने की होड़ मच गई है। सोनिया गांधी मंगलवार को संसद भवन पहुंचीं और मीडिया से बातचीत में कहा कि महिला आरक्षण बिल कांग्रेस का दिया हुआ है। भाजपा सांसदों का कहना है कि मोदी है तो मुमकिन है।

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी एक पुरानी तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट कर देशवासियों को गणेश चतुर्थी की बधाई दी। PM ने हिन्दी और मराठी में दो अलग-अलग पोस्ट किए हैं।

नड्‌डा की सांसदों को हिदायत- हंगामे की स्थिति न बने
कैबिनेट बैठक के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्‌डा के घर 30 सांसदों के साथ दो घंटे तक बैठक हुई। सूत्रों ने बताया कि बैठक में सांसद गौतम गंभीर, मीनाक्षी लेखी, महेश शर्मा, किरेन रिजिजू शामिल हुए।

सूत्रों के मुताबिक, नड्डा ने कहा- पिछली बार जब लोकसभा में महिला आरक्षण बिल लाया गया था, तो काफी विवाद की स्थिति बनी थी इसलिए इस बार सांसदों को ब्रीफिंग दी गई है कि ऐसी कोई स्थिति ना बनने पाए। सांसद तय करें कि बिल पर चर्चा बिना किसी हंगामे के हो।

तीन दशक से पेंडिंग है महिला आरक्षण बिल
संसद में महिलाओं के आरक्षण का प्रस्ताव करीब 3 दशक से पेंडिंग है। यह मुद्दा पहली बार 1974 में महिलाओं की स्थिति का आकलन करने वाली समिति ने उठाया था। 2010 में मनमोहन सरकार ने राज्यसभा में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण बिल को बहुमत से पारित करा लिया था।

तब सपा और राजद ने बिल का विरोध करते हुए तत्कालीन UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दे दी थी। इसके बाद बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया गया। तभी से महिला आरक्षण बिल पेंडिंग है।

मोदी सरकार के मंत्री प्रह्लाद पटेल ने सोशल मीडिया पर कैबिनेट के फैसले की जानकारी दी।

मोदी सरकार के मंत्री प्रह्लाद पटेल ने सोशल मीडिया पर कैबिनेट के फैसले की जानकारी दी।

बिल का विरोध करने के पीछे सपा-राजद का तर्क
सपा और राजद महिला OBC के लिए अलग कोटे की मांग कर रही थीं। इस बिल को विरोध करने के पीछे सपा-राजद का तर्क था कि इससे संसद में केवल शहरी महिलाओं का ही प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। दोनों पार्टियों की मांग है कि लोकसभा और राज्यसभा में मौजूदा रिजर्वेशन बिल में से एक तिहाई सीट का कोटा पिछड़े वर्गों (OBC) और अनुसूचित जातियों (SC) की महिलाओं के लिए होना चाहिए।

बिल पास हुआ तो लोकसभा में 180 महिलाएं होंगी, अभी सिर्फ 78 हैं
मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि महिला आरक्षण बिल मंगलवार को लोकसभा में पेश किया जाएगा। राज्यसभा में यह 2010 में ही पास हो चुका है। इसमें महिलाओं को 33% आरक्षण देने का प्रावधान है। यह बिल पास हुआ तो अगले लोकसभा चुनाव के बाद सदन में हर तीसरी सदस्य महिला होगी।

न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक यह आरक्षण लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में लागू होगा। बिल पास होने के बाद राष्ट्रपति के पास स्वीकृति के लिए जाएगा। कानून बनने के बाद होने वाले चुनावों में यह बिल लागू हो जाएगा।

दो तरीकों से लागू हो सकता है आरक्षण

आरक्षण बढ़ाने का पहला विकल्प: लोकसभा व विधानसभाओं में 33% सीटें महिलाओं के लिए रिजर्व होंगी। 2010 में पेश किए गए बिल के अनुसार, संसद और राज्यों की विधानसभा की एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। संसद और राज्यों में इन सीटों को रोटेशन के आधार पर आरक्षित किया जाएगा। SC और ST के लिए आरक्षित सीटों की कुल संख्या में से एक तिहाई उन समूहों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। यह व्यवस्था दो चुनाव के लिए होगी। हर आम चुनाव के बाद आरक्षित सीटें बदली जाएंगी।

दूसरा विकल्प: संसद में एक तिहाई सीटें बढ़ा दी जाएं, क्योंकि लोकसभा की सीटिंग कैपेसिटी अब 888 हो गई है। संख्या बढ़ाने के लिए ये तरीके हो सकते हैं। जिन संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 18-20 लाख से अधिक है, वहां एक के बजाय दो सदस्य चुनें। इनमें एक सामान्य हो और दूसरी महिला सदस्य को चुना जाए। ऐसी करीब 180 सीटें हैं, जहां 18 लाख से अधिक मतदाता हैं। कम से कम 48 सीटें ऐसी हैं, जहां महिला वोटर पुरुषों से अधिक हैं।

ये दोनों कॉम्बिनेशन अपनाकर महिलाओं के लिए अतिरिक्त प्रतिनिधित्व की व्यवस्था की जा सकती है। किसी एक संसदीय क्षेत्र से दो या अधिक उम्मीदवार चुनने की व्यवस्था पहले भी रह चुकी है। 1952 में 89 और 1957 के चुनाव में 90 सीटों पर दो-दो उम्मीदवार चुने गए थे। तब एक सीट सामान्य के लिए और दूसरी आरक्षित सीट हुआ करती थी। आबादी के आधार पर महिलाओं को अधिक प्रतिनिधित्व दिया गया तो सबसे ज्यादा सीटें UP, राजस्थान गुजरात, मप्र और हिमाचल बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में बढ़ेंगी।

बिना किसी शर्त पर कांग्रेस का बिल को समर्थन
राहुल गांधी ने कहा कि अब दलगत राजनीति से ऊपर उठें। हम महिला आरक्षण बिल पर बिना शर्त के समर्थन करेंगे। संसद के स्पेशल सेशन के पहले दिन जब PM मोदी के बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी लोकसभा में बोल रहे थे तो वे कांग्रेस की पूर्व सरकारों के कामों को गिनाने लगे, इस दौरान सोनिया ने उन्हें टोका और महिला आरक्षण पर बोलने को कहा था।

18 सितंबर को स्पेशल सेशन के पहले दिन PM के बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने स्पीच दी।

18 सितंबर को स्पेशल सेशन के पहले दिन PM के बाद कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी ने स्पीच दी।

विपक्ष भी महिला आरक्षण बिल के पक्ष में
तेलंगाना CM केसीआर की बेटी के. कविता ने 13 सितंबर को दिल्ली में 13 विपक्षी दलों के साथ बैठक की थी। इस दौरान उन्होंने संसद में बजट सत्र के दूसरे चरण में वुमन रिजर्वेशन बिल पेश करने की मांग की थी। कविता ने कहा था कि उनकी पार्टी भारत राष्ट्र समिति (BRS) का विश्वास है कि महिलाओं के लिए रिजर्वेशन के साथ-साथ कोटा के भीतर कोटा पर भी काम किया जाना चाहिए।

कविता लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण की मांग कर रही हैं। इसी मांग को लेकर कविता ने 10 मार्च को दिल्ली में एक दिन की भूख हड़ताल की थी। जिसमें AAP, अकाली दल, PDP, TMC, JDU, NCP, CPI, RLD, NC और समाजवादी पार्टी समेत कई पार्टियां शामिल हुई थीं, लेकिन कांग्रेस ने हिस्सा नहीं लिया था।

महिलाओं के लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग की टाइम लाइन
1931: 
भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान महिलाओं के लिए राजनीति में आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। इसमें बेगम शाह नवाज और सरोजिनी नायडू जैसी नेताओं ने महिलाओं को पुरुषों पर तरजीह देने के बजाय समान राजनीतिक स्थिति की मांग पर जोर दिया।

संविधान सभा की बहसों में भी महिलाओं के आरक्षण के मुद्दे पर चर्चा हुई थी। तब इसे यह कहकर खारिज कर दिया गया था कि लोकतंत्र में खुद-ब-खुद सभी समूहों को प्रतिनिधित्व मिलेगा।

1947: फ्रीडम फाइटर रेणुका रे ने उम्मीद जताई कि भारत की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों के सत्ता में आने के बाद महिलाओं के अधिकारों और स्वतंत्रताओं की गारंटी दी जाएगी। हालांकि यह उम्मीद पूरी नहीं हुई और महिलाओं का राजनीतिक प्रतिनिधित्व सीमित ही रहा।

1971: भारत में महिलाओं की स्थिति पर समिति का गठन किया गया, जिसमें महिलाओं की घटती राजनीतिक प्रतिनिधित्व पर प्रकाश डाला गया। हालांकि समिति के कई सदस्यों ने विधायी निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का विरोध किया, उन्होंने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए आरक्षण का समर्थन किया।

1974: महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ाने के लिए महिलाओं की स्थिति पर एक समिति ने शिक्षा और समाज कल्याण मंत्रालय को एक रिपोर्ट सौंपी। इस रिपोर्ट में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने की सिफारिश की गई थी।

1988: महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (National Perpective Plan) ने पंचायत स्तर से संसद तक महिलाओं को आरक्षण देने की सिफारिश की। इसने पंचायती राज संस्थानों और सभी राज्यों में शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई आरक्षण अनिवार्य करने वाले 73वें और 74वें संविधान संशोधनों की नींव रखी।

1993: 73वें और 74वें संविधान संशोधनों में पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं के लिए एक-तिहाई सीटें आरक्षित की गईं। महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड और केरल सहित कई राज्यों ने स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50% आरक्षण लागू किया है।

1996: एचडी देवगौड़ा की सरकार ने 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया। इसके तुरंत बाद, उनकी सरकार अल्पमत में आ गई और 11वीं लोकसभा भंग हो गई

1998: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने 12वीं लोकसभा में 84वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में विधेयक को फिर से पेश किया। इसके विरोध में एक राजद सांसद ने विधेयक को फाड़ दिया। विधेयक फिर से लैप्स हो गया, क्योंकि वाजपेयी सरकार के अल्पमत में आने के साथ 12वीं लोकसभा भंग हो गई थी।

1999: NDA सरकार ने 13वीं लोकसभा में एक बार फिर विधेयक पेश किया, लेकिन सरकार फिर से इस मुद्दे पर आम सहमति जुटाने में नाकाम रही। NDA सरकार ने 2002 और 2003 में दो बार लोकसभा में विधेयक लाया, लेकिन कांग्रेस और वामपंथी दलों ने समर्थन का आश्वासन दिए जाने के बाद भी इसे पारित नहीं कराया जा सका।

2004: सत्ता में आने के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार ने साझा न्यूनतम कार्यक्रम (CMP) में अपने वादे के तहत बिल पारित करने की अपनी मंशा की घोषणा की।

2008: मनमोहन सिंह सरकार ने विधेयक राज्यसभा में पेश किया और 9 मई, 2008 को इसे कानून और न्याय पर स्थायी समिति को भेजा गया।

2009: स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की और विधेयक को समाजवादी पार्टी, जद (यू) और राजद के विरोध के बीच संसद के दोनों सदनों में पेश किया गया।

2010: केंद्रीय मंत्रिमंडल ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दी। विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया, लेकिन सपा और राजद के UPA सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकियों के बाद मतदान स्थगित कर दिया गया। 9 मार्च को राज्यसभा से महिला आरक्षण विधेयक को 1 के मुकाबले 186 मतों से पारित कर दिया गया। हालांकि, लोकसभा में 262 सीटें होने के बावजूद मनमोहन सिंह सरकार विधेयक को पारित नहीं करा पाई।

2014 और 2019: भाजपा ने अपने चुनावी घोषणापत्रों में महिलाओं के लिए 33% आरक्षण का वादा किया, लेकिन इस मोर्चे पर कोई ठोस प्रगति नहीं की।

दुनिया की राजनीति में महिलाओं की भागीदारी

  • UN women की एक रिपोर्ट में 1 जनवरी 2023 तक का डेटा शेयर किया गया है। इसके मुताबिक- 31 देशों में 34 महिलाएं हेड ऑफ द स्टेट या फिर हेड ऑफ द गवर्नमेंट हैं। अगर जेंडर इक्वैलिटी के लिहाज से देखें तो महिलाओं को पुरुषों की बराबरी करने में अभी 130 साल और लगेंगे।
  • 17 देशों में महिलाएं हेड ऑफ द स्टेट और 19 देशों में हेड ऑफ द गवर्नमेंट हैं। 22.8% महिलाएं कैबिनेट मेंबर्स हैं। दुनिया में सिर्फ 13 देश ही ऐसे हैं, जहां की कैबिनेट्स में महिलाओं की तादाद 50% या उससे ज्यादा है।
  • इसमें भी खास बात ये है कि पावर सेंटर्स से ताल्लुक रखने वाली इन महिलाओं के पास वुमन एंड जेंडर इक्वैलिटी, फैमिली एंड चिल्ड्रन अफेयर्स, सोशल अफेयर्स और सोशल सिक्योरिटी जैसे डिपार्टमेंट्स हैं।
  • orf फाउंडेशन की एक रिपोर्ट में इंटर पार्लियामेंट्री यूनियन के हवाले से सियासत में महिलाओं की भूमिका के बारे में जानकारी दी गई है। इसके मुताबिक- 1 जनवरी 2023 तक दुनिया के सभी देशों में वुमन रिप्रेजेंटेशन (एक सदन या दोनों सदन मिलाकर) 26.5% था। हर साल यह 0.4% की रफ्तार से बढ़ रहा है। इस रिपोर्ट को 187 देशों में स्टडी के आधार पर तैयार किया गया है और हैरानी की बात यह है कि इस लिस्ट में भारत को 143वें स्थान पर रखा गया है।
  • लोकसभा में 15.2% और राज्यसभा में 13.8% महिलाएं हैं। यह डेटा जुलाई 2023 तक का है।
  • रिपोर्ट में इस डेटा एनालिसिस के हवाले से कहा गया है कि जेंडर रिप्रेजेंटेशन की यह कछुआ चाल रही तो पार्लियामेंट रिप्रेजेंटेशन की फील्ड में जेंडर इक्वॉलिटी 2063 से पहले नहीं लाई जा सकेगी।

संसद के विशेष सत्र में ये 4 बिल पेश होने हैं…

1. मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, शर्तें और पद अवधि) बिल, 2023: यह बिल चीफ इलेक्शन कमिश्नर (CEC) और अन्य इलेक्शन कमिश्नर (ECs) की नियुक्ति को रेगुलेट करने से जुड़ा है। बिल के मुताबिक आयुक्तों की नियुक्ति तीन सदस्यों का पैनल करेगा। जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में विपक्ष के नेता और एक कैबिनेट मंत्री शामिल होंगे।

2. एडवोकेट्स अमेंडमेंट बिल 2023: इस बिल के जरिए 64 साल पुराने अधिवक्ता अधिनियम, 1961 में संशोधन करना है। बिल में लीगल प्रैक्टिशनर्स एक्ट, 1879 को निरस्त करने का भी प्रस्ताव है।

3. प्रेस एवं रजिस्ट्रेशन ऑफ पीरियॉडिकल्स बिल 2023: यह बिल किसी भी न्यूजपेपर, मैग्जीन और किताबों के रजिस्ट्रेशन और पब्लिकेशंस से जुड़ा है। बिल के जरिए प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम, 1867 को निरस्त कर दिया जाएगा।

4. पोस्ट ऑफिस बिल, 2023: यह बिल 125 साल पुराने भारतीय डाकघर अधिनियम को खत्म कर देगा। इस बिल के जरिए पोस्ट ऑफिस के काम को और आसान बनाने के साथ ही पोस्ट ऑफिस के अधिकारियों को अतिरिक्त पावर देने का काम करेगा।

Source: ln.run/NogOC

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