बाल गंधर्व, वो शख्स जो था तो एक पुरुष लेकिन इतिहास इन्हें एक महिला के रूप में पहचानता है। नाटकों में महिलाओं की कमी को पूरा करने की जिम्मेदारी उठाते हुए बाल गंधर्व ने करीब 5 हजार नाटकों में महिलाओं की भूमिका निभाई और इतिहास रच दिया।
वैसे तो इनका नाम नारायण श्रीप्रसाद राजहंस था, लेकिन महज 10 साल की उम्र में इनकी गायकी से प्रभावित होकर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने इन्हें बाल गंधर्व नाम दिया।
महिलाओं की तरह संजने-संवरने वाले बाल गंधर्व इस काम में ऐसे मंझे हुए थे कि दर्शक इन्हें एक नजर भर देखने के लिए मीलों का सफर तय किया करते थे। इनकी बनाई और पहनी गई साड़ियां और ज्वेलरी को महिलाएं फॉलो करती थीं। जितना हैरान कर देने वाला इनका करियर उतनी ही ट्रेजेडी भरी इनकी निजी जिंदगी। ये वो थे जो बच्चों के निधन की खबरे सुनकर भी स्टेज पर नाटक करते रहे। देखने वालों की आंखों में आंसू थे, लेकिन इनके लिए परिवार से पहले फर्ज था। इनकी जिंदगी इस तरह की ट्रेजेडी से भरी रही, लेकिन इससे इनकी कला पर कोई असर नहीं पड़ा।
आज बाल गंधर्व की 135वीं बर्थ एनिवर्सरी पर पढ़िए इनकी जिंदगी की कहानी-
लोकमान्य तिलक ने नाम दिया बाल गंधर्व
26 जून 1888 को नारायण श्रीप्रसाद राजहंस का जन्म देशष्ठ ब्राह्मण परिवार में महाराष्ट्र के पालुस गांव में हुआ। इनके पिता शौकिया तौर पर सितार बजाया करते थे, जहां से इन्हें गायन का हुनर विरासत में मिला। पढ़ाई में रुचि नहीं थी तो इन्होंने कम उम्र में ही गायकी शुरू कर दी और हुनर तराशने जलगांव के क्लासिकल म्यूजिक ट्रेनिंग स्कूल चले गए। पुणे दौरे के दौरान इन्हें महज 10 साल की उम्र में लोकमान्य बाल गंगाधर के सामने गाने का मौका मिला। परफॉर्मेंस खत्म होते ही लोकमान्य तिलक इनके पास आए और पीठ थपथपाते हुए नाम दिया बाल गंधर्व (हुनर से भरपूर गायक)।
बाल गंधर्व की तस्वीर।
आवाज थी मधुर, लेकिन सुनने में थे कच्चे
कम उम्र में ही बाल गंधर्व का नाम 1890 तक लोगों की जुबान पर था, वजह थी इनकी मधुर आवाज और भजन गाने का तरीका, लेकिन इन्हें सुनने में परेशानी हुआ करती थी। एक बार इनके हुनर पर कोल्हापुर के राजा महाराजा साहू की नजर पड़ी। जब साहू को इनकी सुनने की परेशानी का पता चला तो उन्होंने खुद पैसे खर्च कर इनका इलाज करवाया और इन्हें किर्लोस्कर नाटक मंडली में जगह दिलाई। यहां से गायक बाल गंधर्व का अभिनय करियर शुरू हुआ। मंडली को लंबे समय से प्ले करने वाली महिला की तलाश थी, लेकिन जब बाल गंधर्व इस मंडली से जुड़े तो उनके चिकने चेहरे और फेस कट से तलाश पूरी हो गई।
18 की उम्र में पहली बार शकुंतला बनकर स्टैज पर आए
साल 1906 में जब 18 साल के बाल गंधर्व, मिराज प्ले में शकुंतला बनकर स्टेज पर पहुंचे, तो हर कोई हैरान था। नाजुक हाथों से पल्लू खींचना, बातों का हाव-भाव और महिला बनने की बारीकी ऐसी कि देखने वाला पहली नजर में धोखा खा जाए। इन्होंने सौभद्र, मान-अपमान, विद्याहरण और स्वंयवर जैसे दर्जनों शोज में कभी नंदिनी, कभी सुभद्रा, भमिनी तो कभी देवयानी या रुक्मिणी बनकर इतिहास में सुनहरे अक्षरों से अपना नाम लिख दिया।
महिलाओं की तरह सजे हुए बाल गंधर्व।
अंत को शुरुआत में बदलने वाले बाल गंधर्व ने किए 5 हजार प्ले
साल 1913 तक आपसी मतभेद के कारण किर्लोस्कर नाटक मंडली टूट गई और बाल गंधर्व का काम पूरी तरह रुक गया। ये एक बुरा अंत था, लेकिन बाल गंधर्व ने इसे खूबसूरत शुरुआत में बदल दिया। 1913 में ही बाल गंधर्व ने अपनी गंधर्व नाटक मंडली शुरू की। इन्होंने समशया कल्लोलस मृच्छकटिकम्, शारदा, एकच प्याला जैसे बेहतरीन प्ले किए। देखते-ही-देखते ये नटसम्राट बन गए। गंधर्व की नाटक मंडली में करीब 100 लोग काम करते थे, जिन्हें गंधर्व आर्थिक मदद देते हुए एक ही छत के नीचे रखते थे।
खूबसूरती ऐसी की पुरुषों को भी कर लेते थे आकर्षित
बाल गंधर्व के बारे में कहा गया कि महिला की खूबसूरती को इतिहास में किसी पुरुष ने कभी आज तक इतनी खूबसूरती से पेश नहीं किया। बाल गंधर्व हर प्ले के बाद महिलाओं की साड़ियों के लिए नया ट्रेंड लेकर आते थे। इनके तरीके से पहनी गई ज्वेलरी और साड़ियां ऑर्डर पर बनने लगी थीं। खूबसूरती ऐसी कि कई पुरुष ऐसे भी थे जो ये जानते हुए भी इनकी ओर आकर्षित हो जाते थे कि ये एक पुरुष हैं। महज 27 प्ले में इन्होंने 36 रोल किए। पूरे करियर में करीब 5000 प्ले किए जो अपने आप में एक बड़ा रिकॉर्ड है।
बाल गंधर्व की पेंटिंग।
बच्चों की मौत की खबर सुनकर भी हंसते हुए करते रहे स्टेज पर अभिनय
जहां एक तरफ बाल गंधर्व की मंडली कामयाबी की सीढ़ियां चढ़ रही थी, वहीं दूसरी तरफ इनकी निजी जिंदगी में दुःख के बादल घिर रहे थे। ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वाले बाल गंधर्व की कम उम्र में ही परिवार ने 1907 में लक्ष्मीबाई से शादी करवा दी थी। इस शादी से इन्हें 7 बच्चे हुए। मार्च 1911 में पहले बाल गंधर्व ने अपना बड़ा बेटा और फिर बेटी भी खो दी। बच्चों की मौत की खबर सुनने के बावजूद इन्होंने स्टेज पर प्ले करना जारी रखा। इन्हें प्ले करते देख दर्शकों की आंखों में तक आंसू आ चुके थे, लेकिन बाल गंधर्व नहीं रुके। एक बार उन्होंने कहा था, मैं पैसे देने वाले और अपने प्रशंसनीय दर्शकों के प्रति अपने कर्तव्य को नहीं भूल सकता- बाल गंधर्व
ट्रेजेडी से भरी रही निजी जिंदगी
पहले दो बच्चों को खोने के 7 साल बाद इनके दो और बच्चों का बचपन में ही निधन हो गया। साल 1928 में बाल गंधर्व की नाटक मंडली को अमरावती में स्टेज परफॉर्मेंस देनी थी, लेकिन पहले ही दिन खबर आई कि इन्फेक्शन के चलते बाल गंधर्व की सबसे बड़ी बेटी भी गुजर गई। इन्होंने टीम को काम जारी रखने के आदेश दिए। ये शो था वसंतसेना। बेटी के गुजरने की खबर मिलने पर भी प्ले कर रहे बाल गंधर्व को देखकर फिर एक बार ऑडियंस की आंखों में आंसू थे।
जिस बेटे के जन्म लिए यज्ञ करवाए उसका एक दिन में ही हुआ निधन
साल 1928 तक बाल गंधर्व के 7 बच्चों में से महज 2 बेटियां ही बची थीं। इनकी दोनों बेटियों की शादी कम उम्र में ही धूमधाम से करवाई गई थी, जिससे बाल गंधर्व भारी कर्ज में दब गए थे। बेटियों की शादी के बाद जब दंपत्ति अकेले पड़े तो बेटे की चाह में इन्होंने यज्ञ करवाया। आखिरकार सालों बाद बाल गंधर्व और लक्ष्मीबाई के घर बेटे का जन्म हुआ, लेकिन अफसोस की महज एक दिन में उसका भी निधन हो गया। बाल गंधर्व के लिए सबसे दुखद समय वो रहा जब शादी के 35 साल बाद इनकी पत्नी लक्ष्मीबाई भी गुजर गईं। ये पूरी तरह टूट चुके थे।
सिनेमा का दौर आया तो मुश्किलों में आ गई नाटक मंडली
1935 तक भारत में बड़े स्तर पर फिल्में बनने लगीं तो दर्शक नाटक की बजाय फिल्में देखने जाने लगे। मंडली भारी कर्ज तले दबने लगी थी। नुकसान से उबरने के लिए बाल गंधर्व ने भी प्रभात फिल्म कंपनी के साथ 6 फिल्मों का कॉन्ट्रैक्स साइन कर लिया। 1935 में गंधर्व वी. शांतारात की फिल्म धर्मात्मा से फिल्मों में आए, लेकिन ये कदम फायदेमंद साबित नहीं हुआ। पहली बार गंधर्व फिल्म में लड़के के रोल में नजर आए, लेकिन फिल्म बुरी तरह पिट गई। ये नतीजा गंधर्व के लिए इतना निराशाजनक था कि उन्होंने सभी कॉन्ट्रैक्स बीच में ही अधूरे छोड़ दिए और 1936 में ये दोबारा थिएटर कंपनी में महिला बनकर काम करने लगे। 15 महीनों के संघर्ष के बाद इन्होंने फिर मंडली शुरू की, लेकिन सारे नाटक एक-एक कर फ्लॉप होने लगे। 1921 के बाद से बाल गंधर्व सालाना करीब 1.75 लाख रुपए कमाई करते थे इसके बावजूद ये ताउम्र भारी कर्ज में दबे रहे।
एक नाटक के दौरान ली गई बाल गंधर्व की तस्वीर।
बढ़ती उम्र के साथ कम हो गया गंधर्व का जादू
थिएटर के बड़े प्रशंसक रहे बाबूराव रुइकर ने बाल गंधर्व को मनाकर 1937 की फिल्म साध्वी मीराबाई में लिया। 50 साल के गंधर्व फिल्म में मीराबाई के रोल में आए, लेकिन उभरते कलाकारों के सामने इनकी अदाओं का जादू कम हो चुका था। थक हारकर गंधर्व फिर नाटक मंडली की ओर लौट आए, लेकिन अब यहां भी बात नहीं बनी।
खाली थिएटर में प्ले करते रहे
जैसे-तैसे नाटक कंपनी फिर शुरू की। इस बार गंधर्व अपनी मंडली लेकर येवला पहुंचे। प्ले शुरू होने से पहले स्टेज के पास खड़े एक व्यक्ति ने गुस्से में कहा – कलाकारों को इतना समय क्यों लग रहा है, जो पर्दा खुलने में देर हो रही है? इस समय गंधर्व महिला की तरह संवरकर पर्दे के पीछे खड़े थे। किसी ने कहा- अरे कलाकार तैयार हैं…लेकिन..। सामने से सवाल आया, लेकिन क्या? जवाब मिला, दर्शक ही नहीं हैं, सिर्फ 6 लोग ही आए हैं। ये सुनकर गंधर्व बुरी तरह निराश हो गए और खंभे का सहारा लेकर टिक गए। फिर सवाल आया, क्या शो कैंसिल कर दें। होश संभालकर गंधर्व ने ऊंची आवाज में कहा, नहीं पर्दा उठाओ, शो होगा। घंटी बजी और शो शुरू हो गया, लेकिन इस बार शोर कर रही भीड़ नहीं बल्कि सिर्फ 6 दर्शकों के सामने।
1944 में बाल गंधर्व ने अपनी नाटक मंडली गौहरबाई के हवाले कर दी। गंधर्व ने काम छोड़ते हुए गौहरबाई को ये जिम्मेदारी भी दी कि अब उनकी जगह महिलाओं के रोल भी वही करें।
बाल गंधर्व के साथ उनकी पहली पत्नी लक्ष्मीबाई।
ब्राह्मण बाल गंधर्व ने मुस्लिम सिंगर से की शादी तो हुआ विवाद
पहली पत्नी को खोने के 11 साल बाद बाल गंधर्व ने अपनी ही नाटक मंडली की सिंगर गौहरबाई से शादी कर ली। गौहरबाई सपने लिए गांव से बॉम्बे पहुंची तो उन्हें बाल गंधर्व के नाटक मंडली में जगह मिल गई। ये भी गंधर्व की आवाज और कला की दीवानी थीं। घंटों इनके गाने सुनतीं और मन ही मन इन्हें पसंद करने लगीं। आखिरकार गंधर्व भी इनकी तरफ आकर्षित हो गए। दोनों ने जब 1951 में शादी की तो हंगामा मच गया। पहले ही भारत हिंदू-मुस्लिम के दंगों के बीच संघर्ष कर रहा था और दूसरी तरफ ब्राह्मण परिवार के गंधर्व ने मुस्लिम महिला को धर्म पत्नी बना लिया था। नतीजन दोनों का परिवार खिलाफ हो गया। सालों तक साथ रहने के बावजूद दोनों की कोई संतान नहीं हुई। गौहरबाई से शादी के एक साल बाद ही बाल गंधर्व फालिस का शिकार हो गए थे, जिससे कभी ये ठीक नहीं हो सके।
समाज की बद्दुआ से ताउम्र संतान को तरसे बाल गंधर्व
आखिरकार सबने ये नतीजा निकाला कि ये लोगों की बद्दुआ थी कि इन्हें बच्चों का सुख नहीं मिला। साल 1964 में बाल गंधर्व की दूसरी पत्नी गौहरबाई का निधन हो गया जिससे फिर एक बार गंधर्व दुनिया में अकेले रह गए।
अवॉर्ड और सम्मान
- 1955- बाल गंधर्व को प्रेसीडेंट अवॉर्ड के लिए संगीत नाटक मंडली की तरफ से नॉमिनेट किया गया।
- 1964- भारत सरकार की ओर से बाल गंधर्व को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
- 1968- पुणे में बाल गंधर्व के सम्मान में बाल गंधर्व रंग मंदिर का उद्घाटन किया गया।
- 2011- 26 जून को इनकी बर्थ एनिवर्सरी में मराठी फिल्म बाल गंधर्व फिल्म बनी जिसे तीन नेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था।
ये कहना भी गलत नहीं होगा कि हर कदम कामयाबी मिलने के बावजूद ये ताउम्र कर्ज में ही दबे रहे। ना काम, ना परिवार, ना हेल्थ। हालत बद से बद्तर हो रहे थे, लेकिन इनका इलाज करवाने वाला भी कोई नहीं था। जब 1960 आते-आते बाल गंधर्व की हालत गंभीर हो गई तो इनका दोस्त पुणे से अपना काम छोड़कर बॉम्बे पहुंचा। लंबा इलाज चला जिस दौरान ये तीन महीनों तक कोमा में भी रहे। आखिरकार तीन महीने तक बिना करवट लिए बिस्तर पर पड़े हुए बाल गंधर्व का 15 जुलाई 1967 में निधन हो गया। ये सिर्फ बाल गंधर्व का ही नहीं बल्कि मराठी म्यूजिकल युग का भी अंत था।
Source: ln.run/rdoul