नई संसद में स्पेशल सत्र के दूसरे दिन केंद्र सरकार ने महिला आरक्षण विधेयक को लोकसभा में पेश कर दिया। ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ के नाम से पेश बिल में संविधान के 128वें संशोधन में लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33% आरक्षण देने का प्रावधान है।
इस बिल में एससी/एसटी के लिए आरक्षित सीटों में महिलाओं के लिए भी एक-तिहाई कोटा होगा। बुधवार को इस पर लोकसभा में चर्चा और वोटिंग होगी। इसके बाद बिल राज्यसभा जाएगा। सरकार इसे 22 सितंबर तक चलने वाले विशेष सत्र में पास कराना चाहती है। ज्यादातर दलों के समर्थन से इसका पास होना भी तय है।
इस साल के विधानसभा चुनाव या 2024 के आम चुनाव में महिला आरक्षण लागू होना मुश्किल है। क्योंकि मसौदे के मुताबिक, कानून बनने के बाद पहली जनगणना और परिसीमन में महिला आरक्षित सीटें तय होंगी। 2021 में होने वाली जनगणना अब तक नहीं हो सकी है।
ऐसे में महिला आरक्षण 2026 से पहले लागू होने की संभावना कम है। कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने बिल पेश करते हुए कहा, इससे लोकसभा में महिलाओं की संख्या 82 से 181 हो जाएगी। इसमें 15 साल के लिए आरक्षण का प्रावधान है। संसद को इसे बढ़ाने का अधिकार होगा।
महिला आरक्षण से जुड़े तीन सवाल और उनके जवाब
1. सवाल- तुरंत लागू क्यों नहीं किया जा सकता।
जवाब- जनगणना और परिसीमन के बाद ही यह कानून लागू हो पाएगा। जनगणना में कम से कम 2 साल लगेंगे। इसके बाद ही परिसीमन संभव है, लेकिन मौजूदा कानून के तहत अगला परिसीमन 2026 से पहले नहीं हो सकता। ऐसे में 2027 में 8 राज्यों के चुनाव व 2029 के आम चुनाव से ही यह लागू हो पाएगा।
2. सवाल- क्या राज्यों की भी सहमति जरूरी है।
जवाब- हां। अनुच्छेद 368 के मुताबिक, संविधान संशोधन बिल के लिए कम से कम 50% राज्यों की सहमति जरूरी होती है। अभी देश के 16 राज्यों में एनडीए की सरकार है। 11 राज्यों में इंडिया गठबंधन और 3 राज्यों में अन्य दलों की सरकारें हैं। हालांकि, ज्यादातर पार्टियां समर्थन में हैं, इसलिए दिक्कत नहीं।
3. सवाल- महिला आरक्षित सीटें कैसे तय होंगी?
जवाब- 2026 के परिसीमन में तय होगा कि कौन-सी सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी। इसके बाद जब-जब परिसीमन होगा, उस हिसाब से सीटें बदलती रहेंगी। इसके लिए पंचायतों में लागू लॉटरी सिस्टम की तरह सीटें तय की जा सकती हैं। हालांकि, मौजूदा मसौदे में इसको लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।
विपक्ष का साथ… लेकिन ओबीसी कोटा मांगा
महिला आरक्षण बिल में ओबीसी कोटा न होने से विपक्ष के साथ ही भाजपा में भी सवाल उठे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा, इसमें पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी महिलाओं का आरक्षण निश्चित होना चाहिए। पढ़िए किसने क्या कहा…
- बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी- यह बिल ओबीसी और ईबीसी वर्ग की महिलाओं को ठेंगा दिखाने वाला है।
- बसपा सुप्रीमो मायावाती- एससी, एसटी के साथ ओबीसी वर्ग का भी कोटा अलग से होना चाहिए।
- बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने भी ओबीसी आरक्षण की वकालत की।
- भाजपा नेता उमा भारती- मुझे डर है, यह 33% आरक्षण उस वर्ग को चला जाएगा जो बस मनोनीत से होंगे। मैंने पीएम मोदी को लिखा है OBC महिलाओं के लिए 50% आरक्षण होना चाहिए, नहीं तो भाजपा में इस वर्ग का विश्वास टूट जाएगा।
- कांग्रेस सांसद पी. चिदंबरम– न तो अगली जनगणना की तारीख तय है, न ही परिसीमन की। ऐसे में महिला आरक्षण दो अनिश्चित तिथियों पर निर्भर है, इससे बड़ा जुमला क्या हो सकता है।
20 साल में महिला प्रत्याशी 152% व सांसद 59% बढ़ीं
1999 से 2019 में महिला वोटर्स 20%, प्रत्याशी 152% और महिला सांसदों की हिस्सेदारी 59% तक बढ़ गई। लेकिन, मध्य प्रदेश, आंध प्रदेश, महाराष्ट्र, असम और गुजरात विधानसभा में 10 फीसदी से भी कम महिला विधायक हैं।
- साल में पुरुषों से ज्यादा महिला वोटर जुड़ीं: 2019 से 2022 के बीच 5% महिला व पुरुष मतदाता 3.6% बढ़े हैं। 2019 आम चुनाव में महिलाओं का वोट प्रतिशत भी पुरुषों से ज्यादा रहा। बीते दो साल में 8 विधानसभा चुनावों में से 6 में भी यही ट्रेंड दिखा।
- महिलाओं में चुनाव जीतने की क्षमता पुरुषों से अधिक: 30 वर्ष में 92 विस चुनावों का डेटा बताता है कि महिला की जीतने की क्षमता 13% व पुरुष की 10% है। पर पुरुषों के मुकाबले भागीदारी 90% कम।
- जहां महिला सांसद अधिक, वहां भ्रष्टाचार कम: जर्नल ऑफ इकोनॉमिक बिहेवियर एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित शोध के मुताबिक, जहां महिला सांसद ज्यादा होती हैं, उन सरकारों में भ्रष्टाचार कम होता है।
सीटें बढ़ाने की मंशा के चलते परिसीमन से जोड़ा गया बिल
अगर यह विधेयक मौजूदा सत्र में ही पारित हो गया तो इसके बाद होने वाली जनगणना के आधार पर परिसीमन की कवायद शुरू हो सकेगी। यानी इस प्रक्रिया के बाद सीटें नई लोकसभा की क्षमता को देखते हुए बढ़ायी जाएंगी और उनका एक तिहाई हिस्सा महिलाओं के हक में जाएगा।
जाहिर है कि इस प्रक्रिया में सीटें बढ़ाने की मंशा शामिल है। इससे सीटें बढ़ सकती हैं और उसका एक तिहाई महिलाओं के लिए आरक्षित किया जााएगा। ऐसा न होता तो इस विधेयक को परिसीमन से नहीं जोड़ा जाता। विधेयक बिना परिसीमन के भी लाया जा सकता था।
राज्यसभा में 2010 में पारित पिछले बिल में परिसीमन की शर्त नहीं थी। पर, यह तो बिल पर निर्भर करता है। इस नए ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ में महिला सीटों के आरक्षण के लिए अनुच्छेद 334 ए जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है महिला आरक्षण के लिए परिसीमन अनिवार्य होगा।
Source: ln.run/VyrZ_