महेश बाबू की फिल्म ‘गुंटूर कारम’ Review पहले दिन ही खेल खत्म!

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नए साल में महेश बाबू फिल्म 'गुंटूर कारम' सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी हैं।

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फिल्म के  रिलीज से पहले दर्शकों में उत्साह देखा गया था, फिल्म की रिलीज के बाद के बाद वैसा उत्साह दर्शकों में नहीं देखा जा रहा है।

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फिल्म के लेखक-निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास के साथ महेश बाबू ने 14 साल बाद काम किया है। साल 2010 में रिलीज फिल्म 'खलेजा' में महेश बाबू ने निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास के साथ काम किया था।

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फिल्म में निर्देशक के साथ महेश बाबू की जो केमिस्ट्री देखने को मिली थी, वैसी केमिस्ट्री फिल्म ' 'गुंटूर कारम' में देखने को नहीं मिल रही है।  

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फिल्म 'गुंटूर कारम' की शुरुआत फ्लैशबैक से होती है। वीरा वेंकट रमन के पिता सत्यम को एक हत्या के आरोप में जेल हो जाती है

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वीरा  वेंकट रमन  का बचपन अपने पैतृक गांव में बीतता है और वह बड़ा होकर मिर्च के कारोबार में शामिल हो चुका है।

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वसुंधरा का परिवार एक समझौते पर वीरा वेंकट रमन का  हस्ताक्षर चाहता है, जिससे उसकी मां के साथ सभी संबंध खत्म हो जाते हैं।

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फिल्म के निर्देशक त्रिविक्रम श्रीनिवास ने ही फिल्म की कहानी भी लिखी है। फिल्म की कमजोर कथा और पटकथा ने पूरा खेल बिगाड़ दिया।

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फिल्म में महेश बाबू ने वीरा वेंकट रमन की भूमिका निभाई है। फिल्म में उनका एक्शन अवतार तो ठीक है क्योंकि उसमें बॉडी डबल से काम चल जाता है।

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